सिर्फ वारिस पठान ही नहीं बल्कि पूरी एम आई एम ने पूरी तरह निराश किया है

सीएए,एन आर सी, एनपीआर जैसे मुद्दे पर एम आई एम के नेता मंच से मंच ट्रैवल करते हुए भाषण भले ही दे रहे हैं मगर कुछ ठोस करते हुए नजर नहीं आ रहे हैं । पता नहीं इनकी स्ट्रेटजी क्या है मगर जो भी स्ट्रैजी है वह किसी काम की नहीं है । क्योंकि किसी भी सरकार को झुकाने के लिए सिर्फ भाषण बाजी पर्याप्त नहीं है, सरकार से अपनी मनवाने के लिए जनता के समर्थन,सहयोग की ज़रूरत होती है, जन सहयोग से आंदोलन की ज़रूरत होती है, और जब सरकार सुनने के मूड में न हो तो आंदोलन को उग्र करने की जरूरत होती है । और इसके लिए किसी भी आंदोलन को जरूरत होती है एक अदद नेतृत्व की, एक संगठन की,जबकि इस आंदोलन में नेतृत्व की कमी, संगठन की कमी साफ दिखाई दे रही है ।

एम आई एम के नेताओं ने भी वही किया जो आम जनता स्वत: स्फूर्ति से कर रही है । देशभर में जितने आंदोलन हो रहे हैं हर आंदोलन से एक वक्ता निकल कर के आ रहा है, जो वक्ता नहीं है उसे भी बोलने और अपनी बात कहने का मौका मिल रहा है फिर ऐसे में ओवैसी का बोलना, तर्कसंगत बोलना कोई बहुत बड़ी बात नहीं है,वह तो पहले से भी बोल ही रहे थे । ज़रूरत है इससे आगे बढ़ कर कुछ बड़ा करने की, रेल रोकने की, चक्का जाम करने की, जेल भरने की ज़रूरत और यह सब तभी संभव हो सकता है जब कोई नेतृत्व हो कोई संगठन हो । वरना आम जनता को दो डंडे मारो वह डरकर घर बैठ जाती है, घबरा कर चुप हो जाती है, इसलिए किसी आंदोलन को देर तक चलाए रखने के लिए उसके पीछे मजबूत संगठन और एक नेतृत्व जरूरी है । जो एक नैरेटिव तैयार कर सके जो तय्यार नैरेटिव को भुना सके, सरकार की नीतियों को एक्सपोज कर सके । वरना हम पूरे देश में हज़ारों शाहीन बाग़ बनाकर हज़ार सालों तक आंदोलन करते रहें कुछ नहीं होने वाला है ।

क्योंकि हमारी लड़ाई भाजपा r.s.s. जैसी क्रूर शक्तियों से है,शातिर शक्तियों से है । भाजपा और आर एस एस ऐसे संगठन है जो पुलवामा अटैक के बाद बैकफुट पर जाने के बजाय फ्रंट फुट पर आकर खेलने लगे और 40 जवानों की शहादत को भुना कर दोबारा सत्ता में आ गए । पुलवामा अटैक से पहले मोदी की लोकप्रियता 50% के आसपास थी जो कि पुलवामा अटैक के बाद अचानक 70% से अधिक हो गई क्योंकि उन्होंने बिना देर किए इसे भुनाना शुरू कर दिया, खुद ही सत्ता में रहते हुए जिम्मेदारा स्वीकारने के बजाय ख़ुद ही धरना प्रदर्शन का आयोजन किया जहाँ जमकर आतंकवाद को और पाकिस्तान को बुरा भला कहा गया, और यह कार्य भी इतने कम समय में पूरी तय्यारी के साथ बूथ लेवल पर पूरे देश में किया गया । (आप इसे प्री प्लॉन भी कह सकते हैं पर मैं नहीं कहूँगा क्यूँ कि मेरे पास साक्ष्य नहीं है) इस तरह भाजपा ने अपनी नाकामी को छुपा लिया, उसके बाद बालाकोट का ड्रामा हुआ और भाजपा जीत गई । जिस संगठन के पास इतनी नैनो स्ट्रैटेजी हो उससे लड़ाई लड़ने के लिए संगठित होना, नेतृत्व का होना बहुत ज़रूरी है । अगर नेतृत्व होता तो सिर्फ यूपी में 23 लोगों को पुलिस ने गोली मारा है उस मुद्दे पर पूरे यूपी की जेलों को भर दिया जाता, थानों को घेर लिया जाता, विधायकों, सांसदों को सड़क पर निकलने बोलने से रोका जा सकता था, दबाव बनाया जा सकता था, इस मुद्दे को इंटरनेशनल लेवल तक उठाया जा सकता था । मगर एमआईएम ने अपने नकारेपन से यह सुनहरा मौका गवा दिया । मैं सिर्फ एम आई एम की बात इसलिए कर रहा हूं क्योंकि कांग्रेस, सपा, बसपा जैसी अन्य पार्टियों की मजबूरी है उन्हें बहुसंख्यक वोटों को भी साधना है मगर एमआईएम तो कैंडिडेट भी वही उतारती है जो सीट मुस्लिम बहुल होती है ।

एमआईएम में यदि नेतृत्व क्षमता होती वह कॉल देती आइए आज फला हाईवे को जाम करना है या कहीं पर रेलवे को जाम करना है या किसी नेता का घेराव करना है । जनता साथ आती यदि पुलिस बर्बरता करती दो एक लोग मारे जाते तो जनता खुद-ब-खुद जुड़ती चली जाती मगर शर्त है कि कोई नेतृत्व हो जो प्लान तैयार करें और फिर उस पर चलने के लिए आह्वान करे । देश की राजनीति में यह एक इकलौता मुद्दा है जो किसी नेता का नहीं स्वयं जनता है, इस मुद्दे पर लड़ने के लिए बोलने के लिए किसी नेता को जेब से एक पाई ख़र्च करने की भी ज़रूरत नहीं है क्यूँ कि जनता ख़ुद बख़ुद जुड़ रही है । चतुर नेता ऐसे मौकों की ताक में रहते हैं । बहरहाल उवैसी भी जमीयत के मुल्लों जैसे ही लग रहे हैं जो सिर्फ बोल बोल कर प्रेशर रिलीज़ करते हैं ।

वारिश हाशमी

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