रुबरू “जुमई खां आज़ाद प्रतापगढ़ी” से

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जुमई खां आज़ाद प्रतापगढ़ी अवधी भाषा के बड़े शायर थे, उनको अवधी स्मार्ट कहा जाता था, उनकी नज़्मों और और गीतों के 21 मज़मूऐ हैं, अवधी भाषा की ख़िदमत और राष्ट्रीय शोहरत की वजह से आपको “मलिक मुहम्मद जायसी एवार्ड” अवध अवधी एवार्ड” राजीव गांधी एवार्ड” अवधी रतन एवार्ड मिले और अवधी एकेडेमी ने भी सम्मानित किया।जुमई खांन आज़ाद ने अपनी नज़्मों और गीतों में देश से मुहब्बत और प्रेम का प्रचार किया, हिन्दू मुस्लिम एकता का पाठ पढ़ाया, सामाजिक नज़्मैं भी कहीं, गरीबों कि दुख दर्द भी गाया, पूंजी पतियों की ऐश भरी जिन्दगी को भी निशाना बनाया, छुआ-छूत को खण्डन किया, कथरी, देसी कुकुर वग़ैरह नज़मैं आपकी बहुत मशहूर हुईं।आपकी शायरी और गीत मुस्लिमों से ज्यादा हिन्दुओं मे मशहूर हुए,जुमई खांन आज़ाद प्रतापगढ़ी 05 अगस्त 1930 को गोबरी में पैदा हुए, और 85 साल की उम्र काट कर 29 दिसम्बर 2013 को मृत्यु हुई, पिता का नाम सिद्दीक़ अहमद और माता का नाम हमीदा बानो है, आप के दो बेटे मुस्तफा और मुर्तज़ा हयात हैं।

आपकी शायरी का रंग कुछ इस प्रकार है

———————–कथरी———————–

कथरी तो हार गुन ऊ जानैं जे करें गुज़ारह कथरी मालोटैं लड़िका सयान सारा परिवार बेचारा कथरी माइतनी अनमोल अहा कथरी ना मोल बिचानू हटिया मामुल तोहका देखा घरे घरे सब जने बिछाए खटिया मातोहरे गोंदिया मे लोट पोट हम खेल कूद बलवान भइनहमरे पुरखा तोहरे बल पा गांधी गौतम भगवान भइनतुलसी कबीर जायसी सूर सब रहे दबाये कखरी माकथरी तोहार गुन ऊ जाने जे करे गुजारा कथरी मा।

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