कोरोना मौत से डरें या पापी पेट वाली हर रोज़ की मौत से, देखे बूढ़ी दादी की जबानी

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कोरोनावायरस लॉक डाउन के बीच एक ऐसी दर्द भरी बुजुर्ग दंपत्ति की दास्तां सामने आई है। जिसे सुनकर आंखें नहीं दिल से आंसू निकल पड़े हैं। एक बुजुर्ग दंपत्ति जिनमें पति अपनी आंखें खुल चुका है। दोनों ही सड़क पर गुब्बारे बेचने के लिए सुनसान सड़क पर निकल आए हैं। जिनका कहना है कि लॉक डाउन के दौरान हम लोग घर पर कब तक रहें? खाने पीने के लिए सब कुछ खत्म हो गया तो घर में कलेश होने लगी और निकल पड़े पापी पेट के लिए कुछ कमाने की फ़िराक़ में, इन सुनसान सड़कों पर

शीला और उसके पति बहादुर सिंह दोनों ही बुजुर्ग जो कि खुद को पुराने शहर के कृष्णा कॉलोनी लाल मस्जिद के पास निवासी बता रहे हैं। बन्नादेवी इलाका स्थित मछली वाली गली के बाहर सुनसान सड़क किनारे गुब्बारे बेचते हुए नज़र आए। जब इन लोगों से पूछा गया तो बुजुर्ग महिला ने बताया कि बहादुर सिंह की बुखार बिगड़ जाने के कारण आंखों की रोशनी चली गई। यह लॉक डाउन जब से हुआ है तभी से वह अपने घर पर ही थे। उनकी दो बेटियां हैं जिनकी शादी हो चुकी है। एक को उसका पति छोड़ चुका है। दूसरी बेटी जो मेरठ में रहती है वह भी आई हुई थी लेकिन रॉकटाउन के चलते ही घर पर यही फंसी रह गई है। शीला ने बताया कि दो-चार दिन तो हम घर पर ही रुके, कुछ राशन पानी मदद के तौर पर मिल गया। अब वह भी खत्म हो गया है। जब राशन खत्म हो गया तो घर में बच्चों के बीच झगड़ा शुरू हो गया। इधर राशन वाले ने एक नाम काट दिया उसे जुड़वाने के 200 रुपये मांगे हैं। अब परेशान होकर हम मियां बीवी ने सोचा कि चलो बाहर अपने गुब्बारे बेचने चलते हैं। ऊपरवाला कुछ तो मदद कर ही देगा। यहां मच्छी वाली गली के बाहर बैठे हुए थे। लोगों ने कुछ मदद भी की, लेकिन उससे एक वक्त का खाना तो हो जाता है पूरे परिवार का पालन पोषण तो नहीं हो पाता है।

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