नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के एक बयान पर सियासत गरमा गई है। उनके द्वारा उर्दू को “कठमुल्ला” की भाषा कहे जाने पर कांग्रेस नेता और सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने ट्विटर (X) पर एक लंबी पोस्ट लिखते हुए उर्दू की विरासत और इसकी अहमियत पर जोर दिया।
क्या बोले इमरान प्रतापगढ़ी?
इमरान प्रतापगढ़ी ने लिखा—
“जिस उर्दू की मुहब्बत में राम प्रसाद बिस्मिल हो गए, जिस उर्दू की मुहब्बत में रघुपति सहाय फिराक़ गोरखपुरी हो गए, बृजनारायण चकबस्त हो गए, पं. हरिचंद अख़्तर हो गए, सम्पूर्ण सिंह कालरा ‘गुलज़ार’ हो गए। जिस उर्दू में भगत सिंह खत लिखा करते थे, जिस उर्दू को गांधी जी हिंदुस्तानी भाषा कहते थे, जिस भाषा से नेहरू और पटेल ने प्यार किया। जिस भाषा ने ‘इंकलाब ज़िंदाबाद’ और ‘जय हिंद’ का नारा दिया, जिस भाषा में मुहब्बत और बग़ावत के गीत गाए गए, आज एक सूबे के मुखिया उसी भाषा को कठमुल्ला की भाषा कह रहे हैं।”
इमरान ने यह भी कहा कि उर्दू किसी धर्म विशेष की भाषा नहीं बल्कि भारत की साझी विरासत है। उन्होंने आनंद नारायण मुल्ला का शेर शेयर करते हुए लिखा—
“मुल्ला बना दिया है इसे भी महाज़-ए-जंग
इक सुल्ह का पयाम थी उर्दू ज़बाँ कभी।”
उर्दू पर क्यों गरमाई बहस?
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में एक बयान दिया था, जिसमें उन्होंने उर्दू को कठमुल्ला की भाषा कहकर संबोधित किया। इस पर कई राजनीतिक और साहित्यिक हस्तियों ने विरोध जताया है। उर्दू भाषा के इतिहास को देखते हुए इसे केवल किसी एक धर्म से जोड़ना सही नहीं माना जा रहा।
उर्दू के ऐतिहासिक योगदान:
- स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका – ‘इंकलाब ज़िंदाबाद’ और ‘जय हिंद’ जैसे नारे उर्दू से ही निकले।
- हिंदू और मुस्लिम कवियों का योगदान – राम प्रसाद बिस्मिल, चकबस्त, फिराक़ गोरखपुरी, गुलज़ार जैसे कई नामचीन साहित्यकारों ने उर्दू में लिखकर इसे समृद्ध किया।
- महात्मा गांधी और भगत सिंह का जुड़ाव – गांधी जी उर्दू को हिंदुस्तानी भाषा मानते थे, और भगत सिंह ने अपने कई पत्र उर्दू में लिखे थे।
सियासी बयानबाजी और असर
योगी आदित्यनाथ के इस बयान से उत्तर प्रदेश की राजनीति में हलचल मच गई है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इसे संस्कृति और भाषा पर हमला बता रहे हैं, जबकि भाजपा समर्थक इसे हिंदू पहचान से जोड़ रहे हैं।
इमरान प्रतापगढ़ी के इस ट्वीट के बाद सोशल मीडिया पर भी बहस छिड़ गई है। जहां एक तरफ लोग उर्दू को भारतीय विरासत की भाषा बता रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ लोग इसे धार्मिक पहचान से जोड़कर देख रहे हैं।
उर्दू भाषा को लेकर चल रही यह बहस केवल भाषा तक सीमित नहीं, बल्कि यह राजनीति, पहचान और ध्रुवीकरण का मुद्दा भी बन चुकी है। उर्दू को कठमुल्ला की भाषा कहे जाने पर विरोध होना लाजमी है, क्योंकि यह भाषा हिंदू-मुस्लिम एकता, स्वतंत्रता संग्राम और भारतीय संस्कृति की गवाह रही है।
अब देखना होगा कि इस मुद्दे पर भाजपा और कांग्रेस की राजनीति क्या मोड़ लेती है और क्या योगी आदित्यनाथ इस पर कोई सफाई देते हैं या नहीं।
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