राष्ट्रपति भवन के लाल कालीन पर नंगे पैर पहुंचे ये अपने असली हीरो कौन हैं..? जाने पढ़ें खबर

राष्ट्रपति भवन में सोमवार 8 नवम्बर को एक भव्य समारोह में 2020 के लिए पद्म पुरस्कारों से नवाजी गई हस्तियों को सम्मानित किया गया। ‘भारत रत्न’ के बाद पद्म पुरस्कार देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान होते हैं। इस बार भी आम आदमी के कुछ गुमनाम नायकों को सम्मानित किया गया।

राष्ट्रपति भवन के लाल कालीन पर नंगे पैर पहुंचे ये अपने असली हीरो कौन हैं?

राष्ट्रपति भवन का ऐतिहासिक दरबार हॉल। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति समेत देश की सबसे ताकतवर हस्तियों की जुटान। कैमरों के चमकते फ्लैश और तालियों की गड़गड़ाहट के बीच राष्ट्रपति भवन के रेड कार्पेट पर नंगे पांव बढ़ते कुछ बहुत ही साधारण से दिखने वाले लोग…लेकिन ये कोई साधारण शख्स नहीं, बल्कि असाधारण काम करने वाली शख्सियत हैं। यह दृश्य देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों ‘पद्म पुरस्कारों’ की नवाजगी का है।

राष्ट्रपति के हाथों देश के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘पद्म श्री’ से नवाजी जा रही इस शख्सियत को देखिए। लुंगी के अंदाज में लपेटी गई सफेद धोती। सफेद रंग का शर्ट और गले में लपेटा हुआ एक सफेद गमछा। पैरों में चप्पल तक नहीं, बिल्कुल नंगे पांव। यह हैं कर्नाटक के हरेकला हजब्बा। यह मेंगलुरु की सड़कों पर टोकरी में संतरा रखकर घूम-घूमकर बेचा करते हैं। पढ़ाई के नाम पर ‘काला अक्षर भैंस बराबर’ यानी पूरी तरह अनपढ़। दक्षिण कन्नड़ जिला के जिस गांव में वह पैदा हुए वहां स्कूल नहीं था, इसलिए पढ़ नहीं पाए। ठान लिया कि अब इस वजह से गांव का कोई भी बच्चा अशिक्षित नहीं रहेगा। संतरा बेचकर पाई-पाई जुटाए पैसों से उन्होंने गांव में स्कूल खोला। यह स्कूल ‘हजब्बा आवारा शैल’ यानी हजब्बा का स्कूल नाम से जाना जाता है।

72 साल उम्र। बदन पर कपड़े के नाम पर जैसे कोई चादर चपेटी गई हो। नंगे पैर रेड कार्पेट पर दस्तक। सम्मान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह जैसी हस्तियां हाथ जोड़े अभिवादन कर रही हैं। यह हैं तुलसी गौड़ा। एक पर्यावरण योद्धा जिन्हें इनसाइक्लोपीडिया ऑफ फॉरेस्ट’ के नाम से जाना जाता है। उन्हें भी सामाजिक कार्यों के लिए ‘पद्म श्री’ से सम्मानित किया गया है।

तुलसी गौड़ा पिछले 6 दशकों से पर्यावरण सुरक्षा का अलख जगा रही हैं। कर्नाटक के एक गरीब आदिवासी परिवार में जन्मीं गौड़ा कभी स्कूल नहीं गईं लेकिन उन्हें जंगल में पाए जाने वाले पेड़-पौधों, जड़ी-बूटियों के बारे में इतनी जानकारी है कि उन्हें ‘इनसाइक्लोपीडिया ऑफ फॉरेस्ट’ कहा जाता है। हलक्की जनजाति से ताल्लुक रखने वाली तुलसी गौड़ा ने 12 साल की उम्र से अबतक करीब 30 हजार पौधे लगाकर उन्हें पेड़ का रूप दिया। अब वह अपने ज्ञान के खजाने को नई पीढ़ी के साथ साझा कर रही हैं, पर्यावरण संरक्षण की अलख जगा रही हैं।

साधारण लाल साड़ी में नंगे पांव यह महिला राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों देश का चौथा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान ‘पद्म श्री’ हासिल कर रही हैं। यह हैं राहीबाई सोमा पोपेरे। महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले की एक आदिवासी महिला। पेशा खेती-किसानी लेकिन नारी सशक्तीकरण की सशक्त मिसाल। इन्हें ‘सीड मदर’ के नाम से जाना जाता है। उन्होंने जैविक खेती को एक नई ऊंचाई दी हैं। 57 साल की पोपेरे स्वयं सहायता समूहों के जरिए 50 एकड़ जमीन पर 17 से ज्यादा देसी फसलों की खेती करती हैं। दो दशक पहले उन्होंने बीजों को इकट्ठा करना शुरू किया। आज वह स्वयं सहायता समूहों के जरिए सैकड़ों किसानों को जोड़कर वैज्ञानिक तकनीकों के जरिए जैविक खेती करती हैं।

कुछ साल पहले तक यही माना जाता था कि पद्म पुरस्कार ज्यादातर उन्हीं को मिलते हैं जिनकी सत्ता के गलियारों में पहुंच हो। जिनके ड्राइंग रूम ऑलिशान हों जहां दीवार पर फ्रेम कर लगाए गए ये पुरस्कार उनकी हैसियत की गवाही दें। जो हवाई जहाज में बिजनस क्लास में सफर करते हों। नाम भी ज्यादातर वहीं जो सत्ता के केंद्र दिल्ली के हों या चमक-दमक वाले शहर मुंबई के या फिर बाकी मेट्रो शहरों के। लेकिन पिछले कुछ सालों से ये सिलसिला बदला है। अब आम आदमी भी देश के इन सर्वोच्च पुरस्कारों से नवाजे जा रहे हैं। वे गुमनाम नायक जिनकी कहानियां प्रेरित करती हैं। जो समाजसेवा और देशसेवा की सच्ची मिसाल हैं।

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