Pratapgarh MLC Election: प्रतापगढ़ में समाजवादी पार्टी ने पहली बार अखिलेश यादव के अत्यंत करीबी विजय बहादुर यादव पर दांव लगाया. यहां चुनाव त्रिकोणीय बन गया है.
UP MLC Election 2022: स्थानीय प्राधिकरण क्षेत्र प्रतापगढ़ में चुनाव की सरगर्मियां तेज हो चुकी हैं. इस चुनाव में निवर्तमान एमएलसी व जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के उम्मीदवार अक्षय प्रताप सिंह ‘गोपाल’ के सामने कड़ी चुनौती है, क्योंकि इस बार के चुनाव में सत्तारूढ़ बीजेपी ने 20 साल से अधिक समय से नगरपालिका के अध्यक्ष पद पर कब्जा जमाए हरीप्रताप सिंह पूर्व विधायक पर दांव लगाया है जो पूर्व मंत्री राजेन्द्र प्रताप सिंह मोती के चचेरे भाई भी हैं.
सपा ने विजय बहादुर यादव पर लगाया दांव
समाजवादी पार्टी जो अब तक बाहुबली नेता रघुराज प्रताप सिंह राजा भइया के साथ हर चुनाव चाहे विधानसभा हो या जिला पंचायत कंधे से कंधा चलती रही. लेकिन, राजा भइया व सपा के मुखिया अखिलेश यादव के बीच अनबन के चलते दोनों की राहें जुदा हो गईं और इस बार समाजवादी पार्टी ने पहली बार अखिलेश यादव के अत्यंत करीबी विजय बहादुर यादव पर दांव लगाया तो जनसत्ता दल के गोपाल अकेले इस सीट को फतह करने निकल पड़े हैं. इसमें राजा भइया भी पहली बार लगातार जनप्रतिनिधियों से संपर्क साधने में जुटे हुए हैं.
मिल गई जमानत
चुनाव में नामांकन के बाद एमपी/एमएलए कोर्ट से बीती 15 तारीख को आरोप तय हुआ और 22 तारीख को 7 साल की सजा व 25 हजार के जुर्माने की सजा के साथ गोपाल जेल भेज दिए गए, इसके बाद असमंजस की स्थिति बन गई. गोपाल की पत्नी मधुरिमा सिंह के साथ ही जनसत्ता दल के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश नाथ ओझा को भी बतौर निर्दलीय मैदान में उतार दिया गया. हालांकि, 23 तारीख को गोपाल को जमानत मिल गई और वो जेल से रिहा हो गए लेकिन ना तो उनकी पत्नी और ना ही कैलाश नाथ ओझा इस लड़ाई से बैक हुए हैं. इसके पीछे कयास लगाए जा रहे है कि द्वितीय वरीयता के मत दूसरे प्रत्याशी के पक्ष में जाने से रोकने के लिए ऐसा किया गया है.
ये भी जानें
बता दें कि, जिले में कुल लगभग 2844 मतदाता है. ऐसा माना जाता है कि इस तरह के चुनावों में धनबल, बाहुबल और सत्ताबल का भी प्रभाव देखने को मिलता है. धनबल और बाहुबल में अक्षय प्रताप औव्वल माने जा रहे हैं तो वहीं सत्ताबल बीजेपी के हरीप्रताप सिंह के पक्ष में माना जा रहा है. जातीय समीकरण की बात करें तो ये समाजवादी के विजय बहादुर यादव के पक्ष में है. अब देखना होगा कि धनबल, बाहुबल, सत्ताबल और जनबल में क्या भारी पड़ता है और किसके सिर पर विजय का ताज जाता है.
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