भोपाल शहर के चौराहों, मंदिरों और सड़कों पर अब कोई हाथ फैलाए भीख मांगता नजर नहीं आएगा। प्रशासन ने भिक्षावृत्ति पर सख्ती दिखाते हुए इसे अपराध घोषित कर दिया है। यह फैसला शहर को भिक्षुक-मुक्त बनाने और जरूरतमंदों के पुनर्वास के उद्देश्य से लिया गया है।
पुराने शहर की तस्वीर
भोपाल का एक व्यस्त चौराहा। लाल बत्ती पर रुकी गाड़ियों के पास छोटे-छोटे बच्चे, बूढ़े, और विकलांग लोग हाथ फैलाकर कुछ रुपये मांगते थे। कई बार यह दृश्य लोगों को झकझोर देता, लेकिन कुछ इसे नजरअंदाज कर आगे बढ़ जाते।
नया फैसला, नई उम्मीद
शहर के कलेक्टर ने आदेश जारी किया कि अब से भोपाल में भीख मांगना और देना, दोनों ही अपराध माने जाएंगे। इस कानून के तहत, जो कोई किसी भिक्षुक को भीख देता है, उस पर भी कानूनी कार्रवाई होगी। प्रशासन का मानना है कि यह कदम न केवल भिक्षावृत्ति को रोकेगा, बल्कि जरूरतमंदों के लिए पुनर्वास की राह भी खोलेगा।
भिक्षुकों के लिए नया आशियाना
सरकार ने सिर्फ रोक लगाने तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि भिक्षुकों के लिए पुनर्वास केंद्र भी बनाए हैं। भोपाल के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कोलार स्थित आश्रय स्थल को ‘भिक्षुक गृह’ में बदल दिया गया है। यहां रहने वाले लोगों को भोजन, चिकित्सा सुविधा और रोजगार के अवसर दिए जाएंगे, ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें।
लोगों की प्रतिक्रिया
इस फैसले पर शहरवासियों की मिली-जुली प्रतिक्रिया आई है। कुछ लोग इसे एक सकारात्मक कदम मान रहे हैं, जबकि कुछ को डर है कि जरूरतमंद लोगों के लिए यह मुश्किलें खड़ी कर सकता है। लेकिन प्रशासन का कहना है कि यह कानून सिर्फ पेशेवर भिक्षावृत्ति रोकने के लिए है, असहाय लोगों की मदद के लिए सामाजिक संस्थाएं और सरकार हमेशा आगे रहेंगी।
एक नई दिशा की ओर
भोपाल अब धीरे-धीरे एक भिक्षुक-मुक्त शहर बनने की ओर बढ़ रहा है। यह फैसला उन लोगों की जिंदगी बदल सकता है, जो मजबूरी में भीख मांगते थे। अगर यह प्रयास सफल हुआ, तो यह देश के दूसरे शहरों के लिए भी मिसाल बन सकता है।
अब देखना यह होगा कि यह बदलाव कितने प्रभावी रूप से लागू हो पाता है और इससे शहर की सूरत कितनी बदलती है।
