परीक्षा के लिए ugc के निर्णय के बाद छात्र परेशान हो रहे है,देखे ख़बर

सभी परीक्षाओं को रद्द करो!
छात्रों को मौत के मुँह में ढकेलना बन्द करो!

देश में हर रोज़ कोरोना के बीस से पच्चीस हज़ार मामले सामने आ रहे हैं। संक्रमण का ग्राफ फ्लैट होने की बजाय एक्स्पोनेंशियल रूप में बढ़ रहा है। गम्भीर रूप से संक्रमित लोगों के मामले में भारत पूरी दुनिया से आगे निकल चुका है। लेकिन इस भयंकर दौर में भी यूजीसी विश्वविद्यालयों को परीक्षा कराने की गाइडलाइन जारी कर रहा है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन भी छात्र-विरोधी नीतियों को लागू करने के लिए कितना मुस्तैद है, इसका अन्दाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि यूजीसी की गाइडलाइन आते ही विश्वविद्यालय प्रशासन ने भी नोटिस जारी कर दी। इलाहाबाद शहर के ज्यादातर इलाके हॉटस्पॉट बन चुके हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के भी दो कर्मचारी इससे पूर्व कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं। विश्वविद्यालय के ज्यादातर छात्र जो दूसरे शहरों में रहते हैं, वो अपने घरों को लौट चुके हैं। लेकिन प्रशासन छात्रों को फिर से सार्वजनिक परिवहन का प्रयोग करके इलाहाबाद शहर तक की यात्रा करते हुए परीक्षा देने के लिए आने को बाध्य कर रहा है। जाहिर है कि बड़े पैमाने पर छात्रों के एक साथ परीक्षा देने के लिए इकट्ठा होने से कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा बढ़ जाएगा। सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की हालत यह है कि अगर डॉक्टरों के पास भी खुद के बचाव के उपकरण नहीं हैं, तो आम छात्रों और आम लोगों की सुरक्षा की बात ही क्या है। यूजीसी का कहना है कि यह छात्रों की योग्यता और भविष्य का सवाल है। लेकिन यूजीसी को विश्वविद्यालय में प्रोफेसरों की कमी, लाइब्रेरी, लैब आदि सुविधाओं के अभाव में योग्यता का तर्क नहीं दिखाई देता है। लेकिन कोरोना महामारी के इस भयंकर दौर में प्रशासन योग्यता का हवाला देकर छात्रों को मौत के मुँह में ढकेल रहा है, ताकि कोरोना संकट की भयंकरता पर पर्दा डाला जा सके। फ़ासीवादी भाजपा सरकार और संघ परिवार का पिछलग्गू संगठन एबीवीपी (अखिल भारतीय विद्यार्थी संगठन) भी इस छात्रविरोधी फैसले का स्वागत कर रहा है। दिशा छात्र संगठन की यह माँग है कि सभी परीक्षाओं को तत्काल रद्द कराया जाये और वैकल्पिक मार्किंग प्रणाली से छात्रों को प्रमोट किया जाये।

संवाददाता मोहम्मद साबिर

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