केंद्र सरकार द्वारा एडवोकेट एक्ट 1961 में संशोधन के प्रस्ताव के खिलाफ देशभर के वकील एकजुट होकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने इस बिल को वकीलों की स्वतंत्रता पर हमला बताया है और इसे तुरंत वापस लेने की मांग की है।
क्यों हो रहा है विरोध?
1. हड़ताल और बहिष्कार पर रोक
नए बिल में धारा 35A जोड़ी जा रही है, जिसके तहत वकील हड़ताल या कोर्ट का बहिष्कार नहीं कर सकेंगे। ऐसा करने पर पेशेवर कदाचार माना जाएगा और उनके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है।
2. वकीलों पर कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई
बिल में धारा 45B जोड़ी गई है, जिसके तहत अगर किसी वकील के कार्य से किसी को नुकसान होता है, तो उस पर शिकायत दर्ज करवाई जा सकती है।
3. बार काउंसिल पर सरकारी नियंत्रण
संशोधन के तहत बार काउंसिल ऑफ इंडिया में केंद्र सरकार को तीन सदस्य नामित करने का अधिकार मिलेगा। इससे बार काउंसिल की स्वायत्तता खत्म होने का खतरा है।
4. कानूनी पेशेवरों की नई परिभाषा
बिल में सिर्फ कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले वकील ही नहीं, बल्कि कॉर्पोरेट वकील, विदेशी वकील और कानूनी सलाहकारों को भी शामिल करने का प्रावधान किया गया है।
5. एक वकील-एक वोट नीति
अब वकीलों को केवल एक बार एसोसिएशन में पंजीकरण कराना होगा और वहीं वोट डालने का अधिकार होगा। स्थान बदलने पर 30 दिनों में नई बार एसोसिएशन में रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी होगा।
वकीलों का आंदोलन
उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में वकीलों ने न्यायिक कार्य ठप कर दिया है। बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने साफ कहा है कि अगर सरकार इस बिल को वापस नहीं लेती, तो देशव्यापी हड़ताल की जाएगी।
राजनीतिक समर्थन
कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने वकीलों के इस आंदोलन का समर्थन किया है। कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यह बिल वकीलों की आजादी छीनने का प्रयास है।
निष्कर्ष
वकील चाहते हैं कि सरकार इस बिल को तुरंत वापस ले, क्योंकि यह उनके अधिकारों और न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर असर डाल सकता है। आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर देशव्यापी आंदोलन तेज हो सकता है।
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