दिल्ली की मुस्लिम बहुल सीटों पर BJP का प्रदर्शन: क्या कहते हैं आंकड़े?

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हामिद इब्राहिम
दिल्ली की राजनीति में मुस्लिम बहुल सीटों का अपना अलग महत्व है। मुस्तफाबाद, सीलमपुर, बल्लीमारान, चांदनी चौक और ओखला जैसी विधानसभा सीटों पर आमतौर पर विपक्षी दलों का दबदबा रहता है। लेकिन इस बार भाजपा ने इन सीटों पर कैसी टक्कर दी? आइए, एक नजर डालते हैं।

मुस्तफाबाद: BJP की उम्मीदों का आखिरी गढ़

मुस्तफाबाद पिछले चुनाव में भाजपा के खाते में गई थी, लेकिन इस बार मुकाबला कठिन रहा। यहां मतदाताओं का झुकाव पारंपरिक रूप से विपक्ष की ओर रहा है, लेकिन भाजपा ने इस सीट पर अपनी स्थिति मजबूत करने की पूरी कोशिश की।

सीलमपुर: मजबूत घेराबंदी के बावजूद संघर्ष

सीलमपुर में भाजपा को पिछले चुनावों में अपेक्षित सफलता नहीं मिली थी। इस बार भी यहां का जनाधार विपक्षी दलों की ओर झुका नजर आया। हालांकि, भाजपा ने इस इलाके में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए नए रणनीतिक प्रयास किए।

बल्लीमारान: पुरानी राजनीति के आगे भाजपा की चुनौती

बल्लीमारान में ऐतिहासिक रूप से कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का असर रहा है। भाजपा ने यहां मुस्लिम समुदाय को साधने की कोशिश की, लेकिन क्या वह वोटों में बदल पाई, यह बड़ा सवाल रहा।

चांदनी चौक: सांकेतिक उपस्थिति या वाकई असर?

चांदनी चौक, जो व्यापारियों और परंपरागत मतदाताओं की सीट रही है, वहां भाजपा ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराने की कोशिश की। लेकिन मुस्लिम मतदाताओं की बड़ी संख्या के चलते यह देखना दिलचस्प रहा कि भाजपा को कितने वोट मिले।

ओखला: शाहीन बाग का असर जारी?

ओखला हमेशा से भाजपा के लिए कठिन सीट रही है। शाहीन बाग आंदोलन के बाद यह इलाका और अधिक चर्चा में रहा। भाजपा ने इस बार अपने प्रत्याशी और मुद्दों के जरिए यहां पैठ बनाने की कोशिश की, लेकिन क्या वह विपक्षी दलों को चुनौती दे पाई?

भाजपा ने इन मुस्लिम बहुल सीटों पर अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए खास रणनीति अपनाई, लेकिन इन इलाकों में उसकी सफलता सीमित ही रही। क्या भविष्य में भाजपा इस समीकरण को बदल पाएगी? यह तो वक्त ही बताएगा।

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