नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट किया है कि किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी के समय उसे उसकी गिरफ्तारी के कारणों की जानकारी देना सिर्फ एक औपचारिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक अनिवार्य संवैधानिक आवश्यकता है। अदालत ने कहा कि यदि इस प्रावधान का पालन नहीं किया जाता है, तो गिरफ्तारी अवैध मानी जाएगी।
हरियाणा पुलिस की कार्रवाई को अवैध ठहराया
यह फैसला न्यायमूर्ति ए.एस. ओका और न्यायमूर्ति एन.के. सिंह की पीठ ने सुनाया। मामला हरियाणा पुलिस द्वारा की गई एक गिरफ्तारी से जुड़ा था, जिसमें गिरफ्तार व्यक्ति को तुरंत उसके गिरफ्तारी के आधारों की जानकारी नहीं दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इसे संविधान के अनुच्छेद 22(1) का उल्लंघन मानते हुए गिरफ्तारी को अवैध घोषित कर दिया और आरोपी की तत्काल रिहाई का आदेश दिया।
संविधान के भाग 3 में शामिल मौलिक अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अनुच्छेद 22 को संविधान के भाग 3 में मौलिक अधिकार के रूप में शामिल किया गया है। यह प्रावधान किसी भी गिरफ्तार व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी की वजह जल्द से जल्द बताने की गारंटी देता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि इस संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन किया जाता है, तो गिरफ्तारी असंवैधानिक मानी जाएगी।
गिरफ्तारी के नियमों का सख्ती से पालन जरूरी
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि पुलिस या अन्य किसी भी कानून प्रवर्तन एजेंसी को इस संवैधानिक प्रावधान का कड़ाई से पालन करना होगा। गिरफ्तारी के दौरान उचित प्रक्रिया न अपनाने से न केवल आरोपी के अधिकारों का हनन होता है, बल्कि यह न्याय प्रणाली की निष्पक्षता पर भी सवाल खड़ा करता है।
इस फैसले को नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिहाज से एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि गिरफ्तारी के दौरान कानूनी प्रक्रिया का पूरी तरह पालन हो और किसी भी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन न हो।
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: गिरफ्तारी की वजह बताना अनिवार्य, न बताने पर गिरफ्तारी अवैध
Date: