मुंबई में तंदूरी रोटी और तंदूरी चिकन का स्वाद जल्द ही बीते दिनों की बात हो सकता है, क्योंकि बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) ने कोयले से चलने वाले तंदूर पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है। यह निर्णय वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने और आग लगने के खतरे को कम करने के उद्देश्य से लिया गया है।
क्यों लगाया गया प्रतिबंध?
BMC का कहना है कि कोयले से चलने वाले तंदूर से निकलने वाला धुआं हवा को प्रदूषित करता है, जिससे लोगों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। खासकर, मुंबई जैसे घनी आबादी वाले शहर में यह समस्या और गंभीर हो जाती है। इसके अलावा, खुले में जलने वाले कोयले से आग लगने की घटनाएं भी बढ़ सकती हैं, जिससे सुरक्षा का खतरा बना रहता है।
BMC ने होटल, रेस्टोरेंट और ढाबों को नोटिस जारी कर निर्देश दिया है कि वे पारंपरिक कोयले के तंदूर को बंद कर दें और उसकी जगह एलपीजी, पीएनजी या इलेक्ट्रिक तंदूर का इस्तेमाल करें। जिन प्रतिष्ठानों द्वारा इस आदेश का पालन नहीं किया जाएगा, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी, जिसमें लाइसेंस रद्द करना भी शामिल हो सकता है।
होटल और रेस्टोरेंट मालिकों की प्रतिक्रिया
BMC के इस फैसले से होटल और रेस्टोरेंट मालिकों में नाराजगी देखी जा रही है। उनका कहना है कि कोयले की भट्ठी पर बनी तंदूरी रोटी और तंदूरी चिकन का स्वाद अलग होता है, जिसे गैस या इलेक्ट्रिक तंदूर में बनाकर हासिल करना मुश्किल है। कई रेस्टोरेंट संचालकों का मानना है कि इस फैसले से उनके व्यवसाय पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि ग्राहक तंदूरी खाने के लिए ही उनके होटल में आते हैं।
कब तक लागू होगा यह नियम?
BMC ने सभी प्रतिष्ठानों को 7 जुलाई 2025 तक कोयले से चलने वाले तंदूर को हटाने और वैकल्पिक ईंधनों का उपयोग शुरू करने के लिए समय दिया है। इस समय सीमा के बाद BMC द्वारा निरीक्षण किया जाएगा, और नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
पर्यावरण और सुरक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण कदम
विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। कोयले से निकलने वाला धुआं न केवल हवा को प्रदूषित करता है, बल्कि यह सांस की बीमारियों का कारण भी बन सकता है। इसके अलावा, आग लगने की घटनाओं को रोकने के लिए भी यह फैसला कारगर साबित हो सकता है।
ग्राहकों की क्या है राय?
मुंबई के कई लोग इस फैसले को मिलाजुला समर्थन दे रहे हैं। कुछ का कहना है कि पर्यावरण और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए यह एक सही कदम है, जबकि कुछ खाने के स्वाद को लेकर चिंतित हैं। सोशल मीडिया पर भी इस फैसले को लेकर बहस छिड़ी हुई है, जहां कुछ लोग इसे सही ठहरा रहे हैं तो कुछ इसे खाने के स्वाद के साथ समझौता मान रहे हैं।
क्या होगा आगे?
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि होटल और रेस्टोरेंट मालिक इस फैसले का पालन किस हद तक करते हैं और BMC इसे लागू करने के लिए कितनी सख्ती दिखाती है। एक तरफ जहां यह निर्णय पर्यावरण संरक्षण और सुरक्षा के लिहाज से जरूरी है, वहीं दूसरी तरफ यह होटल उद्योग के लिए एक नई चुनौती बन सकता है।
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